जम्मू और कश्मीर में आज भी चलती है ट्रेडिशनल पनचक्कियां

समय की कमी और व्यस्तता शहरों में आम है । इसलिए शहर के लोग मशीनों पर आधारित जीवन जीते है और ये मशीने पूरी तरह से बिजली पर निर्भर होती है। लेकिन हम आपको जो तस्वीरें दिखा रहे है। ये आपको बिल्कुल हैरान कर देंगी, प्रकृति के बहते जल स्रोतों का इससे बेहतर उपयोग कुछ नहीं हो सकता है। बहते हुये पानी की धार एक पंखे पर पड़ती है और वो पूरी तरह से घुमते हुये पूरी मशीन को चलाता है जिसमें स्थानीय लोगों का मक्का आसानी से पीस जाता है। ये कश्मीर गांदरबल का सुरफरा गांव है।

जम्मू और कश्मीर में आज भी चलती है ट्रेडिशनल पनचक्कियां
Stop

गांदरबल : भागती दौड़ती जिन्दगी में समय की कमी और जल्द से जल्द अपने कामों को निपटाने के लिए हर जगह मशीनों को इस्तेमाल किया जाता है लेकिन आज हम आपको ले चलते है कश्मीर गांदरबल के सुरफरा गांव में जिसे पारंपरिक जल चक्कियों का घर कहा जाता है । यहां दूर दराज से लोग अपना अनाज पिसवाने के लिए आते है। पढिए हमारी इस खास रिपोर्ट में । 

समय की कमी और व्यस्तता शहरों में आम है । इसलिए शहर के लोग मशीनों पर आधारित जीवन जीते है और ये मशीने पूरी तरह से बिजली पर निर्भर होती है। लेकिन हम आपको जो तस्वीरें दिखा रहे है। ये आपको बिल्कुल हैरान कर देंगी, प्रकृति के बहते जल स्रोतों का इससे बेहतर उपयोग कुछ नहीं हो सकता है। बहते हुये पानी की धार एक पंखे पर पड़ती है और वो पूरी तरह से घुमते हुये पूरी मशीन को चलाता है जिसमें स्थानीय लोगों का मक्का आसानी से पीस जाता है। ये कश्मीर गांदरबल का सुरफरा गांव है।  जो पूरे कश्मीर में पानी से चलने वाली चक्कियों के घर के रूप में जाना जाता है। इस जगह पर दूर दराज से लोग आते है और अपना अनाज पिसवाते है। इन पारंपरिक जल चक्कियों को स्थानीय कश्मीरी भाषा में घराट कहा जाता है और इसकी सबसे बड़ी खास बात ये है कि इसे चलाने के लिए किसी भी तरह से बिजली का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता है। ये पनचक्कि पूरी तरह से प्रकृतिक जल बहाव पर निर्भर है जिससे प्रदूषण जैसी समस्या भी नहीं होती है।  

 

मशीनों के युग में जहां हर काम बेहद आसानी से हो जाता है। वहां कोई भी ज्यादा समय लगने वाली मशीनों पर भरोसा नहीं करना चाहता है, लेकिन सुरफरा गांव में दूर दराज से लोग इसलिए आते है क्योंकि उनका मानना है कि पनचक्कि का आटा सबसे बेहतर होता है। ये पारंपरिक घराट बहते हुये पानी से चलता है। पहाड़ो पर से आने वाले बारहमासी पानी के बहाव को चीर की लकड़ियों और पत्थर की मदद से मशीन की ओर मोड़ा जाता है।  कश्मीरी भाषा में इसे आब-ए-ग्रेते कहते हैं। ये आटा चक्की आमतौर पर पत्थरों से बनी होती है। जो जिंडर नामक पंखे की मदद से चलती है। इसमें दो पत्थर होते हैं।  ऊपर का पत्थर हिलता है और नीचे का पत्थर स्थिर रहता है। पंखा पानी के तेज़ बहाव के साथ चलता है और ऊपर का हिस्सा एक निश्चित गति से चलता है जो बड़े गोल पत्थर को चलाता है। पनचक्की इस जगह की पहचान मानी जाती है। आधुनिक जीवन जीने के लोगों के तरीके और पानी के बहाव में कमी के कारण, पनचक्कियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं।

 

सुरफरा घाटी के स्थानीय लोगों का मानना है कि घराट पनचक्कि में पिसे हुये आटे से बनी रोटी का स्वाद और गुणवत्ता इलेक्ट्रिक मील की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर है। इलेक्ट्रिक मील की रोट का स्वाद भी अच्छा नहीं होता और गुणवत्ता तो खराब होती ही है लेकिन पनचक्कि से पीसे आटे का दरदरापन उसे खाने में बेहतरीन और पोष्टिक बना देता है। ये सबसे बड़ा कारण है कि सुरफरा गांव में दूर दराज से लोग अनाज पीसवाने आते है। गेंहू औऱ मक्का दोनों को इन चक्कियों में पीसा जाता है। इलेक्ट्रिक मील जो कहीं ज्यादा तेज चलकर कम समय में आटा पीसती है वहीं घराट यानि पनचक्की पानी के तेज बहाव पर पूरी तरह से निर्भर होती है। इसलिए कभी तेज कभी धीरे चलकर आटा पीसने में समय ज्यादा लगाती है। 

 

इन पारंपरिक घराट से आटा पीसवाने के लिए रोजाना लोग दूर दूर से आते है। ऐसे ही 10 किलोमीटर दूर के गांव रायिल से आये दानिश का मानना है कि उन्हें केवल पनचक्कि से पीसे आटे की रोटी खाने का स्वाद आता है। इसलिए उनके लिए दूरी मायने नहीं रखती है। वो कहीं भी हो लेकिन आटा पिसवाने के लिए वो सुरफरा की ओर जरूर आते है। इलेक्ट्रिक चक्की उनके गांव में पहले से ही है लेकिन वो फिर भी इतनी दूरी तय करके सिर्फ सुरफरा से ही अपना अनाज पिसवाते है।  

 

गांदरबल के सुरफरा गांव में कुल 10 घराट यानि पनचक्कियां है और यहां के स्थानीय चक्की चलाने वालों का ये एकमात्र कमाने खाने का साधन भी है। पहाड़ो पर से गिरते पानी के बहाव में कमी और सरकार की अनदेखी के कारण ये पनचक्कियां विलुप्त हो रही है। ऐसे में इन पनचक्कियों के संरक्षण का काम स्थानीय लोगों के साथ ही सरकार की भी जिम्मेदारी है। 

 

Latest news

Powered by Tomorrow.io