क्या ख़तरे में है कश्मीर की ये शानदार कलाकारी ?

कश्मीर घाटी में केवल कुदरती ख़ूबसूरती के नज़ारे ही नहीं हैं बल्कि वहां के कारीगरों की कला और हुनर भी काफी मशहूर है। कश्मीर घाटी में अख़रोट की लकड़ी पर हाथ से की जाने वाली नक्काशी भी देखने लायक होती है। सैंकड़ों परिवारों की ये न सिर्फ़ रोजी-रोटी है, बल्कि सदियों से कश्मीर के कारीगरों कि पहचान भी रही है।

क्या ख़तरे में है कश्मीर की ये शानदार कलाकारी ?
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जम्मू-कश्मीर: कश्मीर घाटी में केवल कुदरती ख़ूबसूरती के नज़ारे ही नहीं हैं बल्कि वहां के कारीगरों की कला और हुनर भी काफी मशहूर है। कश्मीर घाटी में अख़रोट की लकड़ी पर हाथ से की जाने वाली नक्काशी भी देखने लायक होती है। सैंकड़ों परिवारों की ये न सिर्फ़ रोजी-रोटी है, बल्कि सदियों से कश्मीर के कारीगरों कि पहचान भी रही है। 

अखरोट की लकड़ी का रंग, दाने और इसकी चमक अलग ही होती है। इसकी लकड़ी पर बेहतरीन और आला दर्जे की नक्काशी की जाती है। आज भी अगर आप किसी पुराने घर या बंगले में जाएंगे तो आपको अखरोट की लकड़ी पर हाथ से की गई नक्काशी के बेहद ख़ूबसूरत नमूने मिल जाएंगे। अखरोट की लकड़ी से दीवान, सोफा, मेज सहित तरह तरह की सुंदर चीजें यहां बनायी जाती हैं। 

अखरोट की लकड़ी से बने इन सामानों की नक्काशी जितनी खूबसूरत है, इन्हें तैयार करना उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल है। पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को अंजाम देने वाले इन कारीगरों का ये काम बेहद बारीक और मेहनत वाला है। कारीगरों के मुताबिक़ इस काम को सीखने में किसी इंसान को सालों साल लग जाते हैं। और ऊपर से इस काम में उतनी कमाई भी नहीं है। नौजवान इस काम को करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। 

हालाकि, अखरोट की लकड़ी पर की गई इन खूबसूरत नक्काशियों की बाज़ारों में काफी मांग है। लेकिन कारीगरों को मिलने वाला मुनाफ़ा बेहद कम रह गया है।  इसके पीछे की वजह है, बाज़ारों में कश्मीर में बने अखरोट की लकड़ी के सामानों के मुकाबले, यूपी के सहारनपुर में तैयार किए गए सामानों की तादाद में इज़ाफा। सहारन पुर में बने इन सामानों की कम क़ीमत की वजह से कश्मीरी कारीगरों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 

सैकड़ो परिवारों और कारीगरों को रोजगार देने वाली ये खूबसूरत नक्काशी और कारीगरी, सौकड़ों सालों से कश्मीर की पहचान रही है। यहां आने वाले टूरिस्ट भी कश्मीर की खूबसूरत कारीगरी के नमूनों के मुरीद हैं। और वे तरह तरह के सामान खरीदते हैं। इन्हीं सामानों के साथ वे अखरोट की लकड़ी पर हाथ से की गई नक्काशी वाले खूबसूरत सामानों को भी याद के तौर पर ले जाना चाहते हैं। 

नौजवान नहीं ले रहे दिलचस्पी

सस्ते सामानों से मुकाबले की मार झेल रहे कश्मीरी कारीगरों और यहां की पीढ़ियों से चली आ रही नक्काशी की कारीगरी, अपनी दूसरी वजहों से भी ख़तरे में है। यहां नौजवान भी इस काम को करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। श्रीनगर के मशहूर कलाकार गुलाम नबी डार, पिछले साठ सालों से लकड़ी पर नक्काशी कर रहे हैं। लेकिन वो अपनी जिंदगी के इस आखिरी पड़ाव पर, कश्मीर की इस कारीगरी की विरासत के आने वाले कल को लेकर परेशान हैं।

गुलाम नबी डार बताते हैं कि, “जब मैं दस साल का था, तब मैंने ये काम सीखना शुरू किया और उस वक़्त मैं सीखने के लिए काफी उत्सुक था। आज की, नई पीढ़ी इस कला पर ध्यान नहीं दे रही है, जिसकी वजह से मुझे इस कला के भविष्य की चिंता हो रही है। मैं लोगों को सिखाना चाहता हूं, लेकिन किसी की दिलचस्पी नहीं है। क्योंकि इस काम को सीखने में बहुत ज़्यादा वक़्त लगता है और आज के नौजवानों में वो सब्र ख़त्म हो गया है।''

ख़ास है अखरोट की लकड़ी पर की गई नक्काशी

अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी करना एक महीन काम है, और कश्मीर में अखरोट के पेड़ों की वजह से ये और भी ख़ास हो जाता है। क्योंकि सिर्फ कश्मीर में ही अखरोट के पेड़ पाए जाते हैं। कश्मीर दुनिया की उन चुनिंदा जगहों में से एक है जहां अखरोट के पेड़ मौजूद हैं। अखरोट की लकड़ी कठीर और टिकाऊ होती है। इसकी सबसे ख़ास बात ये है कि इसमें कभी दीमक नहीं लगती। और अखरोट की लकड़ी से बने सामानों की एक पहचान ये भी है कि वे आम लकड़ी से बने सामानों के मुक़ाबले ज़्यादा भारी होते हैं। और यही कारण है कि अखरोट की लकड़ी पर की गई नक्काशी वाली चीज़ें थोड़ी महंगी होती हैं।

पिछले कुछ वक़्त से बाज़ारों में अखरोट की लकड़ी की कमी हो रही है। कश्मीरी कारीगरों की शिकायत है कि अखरोट की लकड़ी का एक हिस्सा सहारनपुर की फर्नीचर इंडस्ट्री के लिए स्मगल कर सप्लाई किया जा रहा है। और यही वजह है कि कश्मीर में अखरोट के पेड़ कम होते जा रहे हैं।

सरकार क्या कर रही है?

हैंडलूम एंड हैंडिक्राफ्ट के डायरेक्टर, महमूद अहमद शाह का कहना है कि,  "कश्मीर में अखरोट की लकड़ी की नक्काशी का काम चल रहा है। हम लकड़ी के इन सामानों को घरेलू और विदेशी मार्केट में एक्सपोर्ट करते हैं और हर साल इसका टर्नओवर 10 करोड़ रुपये होता है।"

महमूद अहमद बताते हैं कि, सरकार लकड़ी कारीगरों की तरह तरह की योजनाओं के जरिए मदद कर रही है। उनके लिए सरकार वित्तीय सहायता योजना, सहकारी समितियों और कारीगर क्रेडिट कार्ड जैसे विभिन्न कार्यक्रम चला रही है। डिपार्टमेंट इन काबिल और हुनरमंद कलाकारों के उनके ख़ास काम और इस सैकड़ों साल पुरानी कला को बचाए रखने तथा नौजवानों को प्रेरित करने के लिए उन्हें पुरस्कृत भी कर रहा है।

महमूद अहमद ने कहा कि, ''हमने अखरोट की जीआई टैगिंग शुरू कर दी है।'' और रही बात “बाजारों में सहारनपुर के कुछ उत्पाद हैं जो यहां हमारे उत्पादों के लिए समस्या पैदा कर रहे हैं। इसके लिए यहां के व्यापारी ज़िम्मेदार हैं जो इन अलग-अलग कलाकृतियों को मिलाकर बेच रहे हैं। अब हम इन सामानों को जब्त कर रहे हैं। हम इसके लिए एक मुहीम चला रहे हैं, और एक बार जब हम जीआई टैगिंग कर लेंगे, तो बाजारों से ये बाहरी सामान खत्म हो जाऐंगे।”

सरकार भी कर रही है मदद

सौकड़ों सालों से चल रही इस कलाकारी के काम को बचाए रखने के लिए सरकार ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं। इसके लिए, सरकार अलग-अलग सेंटर चला रही है जहां नौजवानों को अखरोट की लकड़ी पर नक्काशी करना सिखाया जाता है। महमूद अहमद ने बताया कि "हम इस कला को जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए हमें कारीगर और खरीदार को जोड़ना होगा। जिसके लिए हमें कड़ी मेहनत करने की जरूरत है।"
नक्काशी के काम और कारीगरों के लिए "हमने कारखंडार योजना भी शुरू की है जिसके तहत हमारी कोशिश है  कि नक्काशी के क्षेत्र में अवॉर्ड जीतने वाले कलाकारों और दूसरे बहतरीन कलाकारों के कारखानों को शिल्प स्थल घोषित किया जाए। और इन कारखानों के लिए हम ट्रेनर्स और ट्रेनिंग लेने वाले हर इंसान को 2500 रुपये का वजीफा भी देंगे।"

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