पाकिस्तानी गुरुद्वारा पहुंचे कश्मीर के ज़ायरीन, हर साल जाते हैं 3 हज़ार लोग

Jammu Kashmir: एक सौ ज़ायरीन का जत्था कल यानी शनिवार की रात श्री गुरुनानक देव जी के प्रकाशोत्सव के मौके पर पाकिस्तान के लिए रवाना हुआ है. हर साल करीब 3 हज़ार ज़ायरीन पाकिस्तान जाते हैं इसलिए इस बार पाकिस्तान ने वीज़ा जारी करने में कटौती कर दी है.

पाकिस्तानी गुरुद्वारा पहुंचे कश्मीर के ज़ायरीन, हर साल जाते हैं 3 हज़ार लोग
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Jammu Kashmir: श्री गुरुनानक देव जी के प्रकाशोत्सव के मौके पर जम्मू से करीब 100 ज़ायरीन का जत्था शनिवार रात को पाकिस्तान के लिए रवाना हो गया है. रवानगी से पहले ज़ायरीन ने गुरुद्वारा बाबा फतेह सिंह की अरदास की. रवाना हुए ज़ायरीन पंजाब के अमृतसर से बाघा सीमा के रास्ते से पाकिस्तान जाएंगे. इस मौके पर ज़ायरीन  करीब दस दिन तक पाकिस्तान के ऐतिहासिक गुरुद्वारों का दीदार करने का मौका मिलेगा. जिसमें  गुरुद्वारा पंजा साहिब, गुरुद्वारा डेरा साहिब सहित कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे मौजूद हैं.

वीज़ा जारी करने में पाकिस्तान ने की कटौती


वीज़ा मैनेजर शमशेर सिंह चौहालवी ने बताया कि, "जम्मू कश्मीर से 170 ज़ायरीन ने वीज़ा के लिए अप्लाई किया था. इनमें से 104 को वीज़ा मिला. उन्होंने कहा कि हर साल पूरे भारत से करीब 3 हज़ार ज़ायरीन पाकिस्तान जाते हैं. इस बार करीब साढ़े पांच हज़ार ज़ायरीन ने अप्लाई किया था, इसलिए वीज़ा जारी करने में पाकिस्तान ने कटौती की है. जिससे कई ज़ायरीन नाराज़ हैं." सफ़र पर पहली बार पाकिस्तान जा रहे जम्मू के महेंद्र सिंह काफी खुश नज़र आए. उन्होंने कहा कि, "यह गुरु नानक देव जी की कृपा का फल है कि उन्हें पाकिस्तान जाने का मौका मिला है."

कैसा होता है सफ़र?


भारत की तरफ से अमृतसर से करीब 1 घंटे का सफर तय करके एक इंटीग्रेटेड टर्मिनल डेरा बाबा नानक ले जाता है. जहां से पाकिस्तान जाने के लिए भारतीय सुरक्षा की मंज़ूरी मिलती है. जिसके लिए करीब 14 दिन पहले ही अप्लाई करना होता है. मंज़ूरी मिलने से पहले पुलिस वैरिफिकेशन करवाना होता है.इसके साथ ही कॉरिडोर के ज़रिए सफ़र के लिए पासपोर्ट की ज़रूरत होती है. 

गुरुद्वारे के अंदर मिल जाते हैं दोनों मुल्क के लोग


साफ सफेद श्रीकरतारपुर साहिब गुरुद्वारे की चमक देखने लायक होता है. यह गुरुनानक का आख़िरी विश्राम स्थल है और सिखों के लिए सबसे पाक़ तीर्थस्थलों में से एक है. 1947 में हुए बंटवारे के बाद से ही भारतीय सिखों का यहां जाने का ख़वाब था. इस गुरुद्वारे में भारतीयों और पाकिस्तानियों की एंट्रा के लिए अलग-अलग गेट होते हैं लेकिन अंदर जाने के बाद सब मिल जाते हैं. भारतीयों और पाकिस्तानियों की पहचान करने के लिए के लिए अलग अलग टैग दिए जाते हैं. पाकिस्तानियों को नीला और भारतीयों को पीला टैग पहनना होता है.

सख़्त होते हैं नियम


करतारपुर कॉरिडोर एक मज़हबी जगह है, लेकिन यहां दोनों देशों के लोगों के बीच रिश्ते बनने में भी मदद मिलती है. कई भारतीय लोग पाकिस्तानी झंडे के सामने खड़े होकर फोटो भी खिंचवाते दिखे. भारत की तरफ लगे हुए बोर्ड में भारत के लोगों को हिदायत दी जाती है कि करतारपुर जाने के दौरान किसी भी पाकिस्तानी के साथ अपना नंबर या पता साझा ना करें. इसी के साथ ही ज़ायरीन को वहां से कुछ अपने साथ ले जाने से मना किया जाता है क्योंकि कुछ भारतीय वहां से करतारपुर साहब की मिट्टी भारत लाने की कोशिश करते हैं.

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