सुम्बल का नंद किशोर मन्दिर हिन्दु मुस्लिम एकता की है एक अनोखी मिसाल

इस मन्दिर का नाम नन्द किशोर महादेव मन्दिर है और ये बांदीपोरा के सुम्बल में मौजूद है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की मन्दिर में साफ सफाई का काम देखने वाले कोई पण्डित या हिन्दू परिवार नहीं बल्कि एक मुस्लिम परिवार है। बल्कि यूं कहें कि सुम्बल में मौजूद हर मुसलमान परिवार का इस मन्दिर से खास जुड़ाव है और वो जुड़ाव है इंसानियत का, एक दूसरे के धर्म का सम्मान करने का, दरसल मन्दिर हजारों साल पुराना है और इसका ऐतिहासिक महत्व भी बहुत पुराना है। बीते 30 सालों में कुछ ऐसा हुआ जिसने मन्दिर को एक ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया कि अब इसकी देखभाल कौन करेगा।

सुम्बल का नंद किशोर मन्दिर हिन्दु मुस्लिम एकता की है एक अनोखी मिसाल
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कश्मीरी पण्डितों के पलायन को लेकर जहां एक ओर हमेशा चर्चा बनी रहती है। तो वहीं दूसरी ओर उनकी वापसी को लेकर सरकार हर मुमकिन प्रयास भी कर रही है, कश्मीरी पण्डितों की आस्था से जुड़ा नन्दकिशोर महादेव मन्दिर जो कि बांदीपोरा के सुम्बल में मौजुद है वहां की देखभाल आज भी स्थानीय मुसलमान परिवार कर रहे है। ये खबर दुनिया में भाई-चारे और मौहब्बत का एक अनोखा पैगाम देती है इसके बारे में हम आपको विस्तार से बताते है।  

तस्वीर में दिखाई देने वाले मन्दिर की साफ सफाई करते हुए कुछ लोगों को देखा जा सकता है। इस मन्दिर का नाम नन्द किशोर महादेव मन्दिर है और ये बांदीपोरा के सुम्बल में मौजूद है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की मन्दिर में साफ सफाई का काम देखने वाले कोई पण्डित या हिन्दू परिवार नहीं बल्कि एक मुस्लिम परिवार है। बल्कि यूं कहें कि सुम्बल में मौजूद हर मुसलमान परिवार का इस मन्दिर से खास जुड़ाव है और वो जुड़ाव है इंसानियत का, एक दूसरे के धर्म का सम्मान करने का, दरसल मन्दिर हजारों साल पुराना है और इसका ऐतिहासिक महत्व भी बहुत पुराना है।

बीते 30 सालों में कुछ ऐसा हुआ जिसने मन्दिर को एक ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया कि अब इसकी देखभाल कौन करेगा। बात कश्मीरी पण्डितों के पालयन की है, कभी ये मन्दिर कश्मीरी पण्डितों के मन्त्रोच्चारण से गुलजार रहता था लेकिन जब 30 साल पहले उनका पलायन हुआ तब इस मन्दिर की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। ऐसे में सुम्बल के मकामी लोगों ने आकर मन्दिर की रखवाली और साफ सफाई का काम देखना शुरू कर दिया । मन्दिर की साफ सफाई  में लगे मकामी बाशिन्दे बताते है कि मन्दिर का ऐतिहासिक महत्व कई हजारों वर्ष पुराना है। कश्मीरी पण्डितों के पलायन के बाद सुम्बल गांव के हर मुस्लिम परिवार ने इस मन्दिर की देखभाल की है। यहां पर मन्दिर के विकास के कामों में गांव के सभी लोगों का सहयोग मिलता है। नगर निगम के लोग भी साफ सफाई की व्यवस्था देखते है। हम लोग आज भी अपने कश्मीरी पण्डित भाईयों को याद करते है। उनकी घर वापसी हो तो उस दिन हमारे लिए ईद और दिवाली से कम नहीं होगी ।  

हिन्दू मुस्लिम भाईचारे की इससे बेहतर मिशाल और कोई नहीं हो सकती है। क्योंकि मन्दिर की देखभाल और रखरखाव के लिए कभी भी किसी को बोला नहीं गया लेकिन यहां के स्थानीय मुस्लिम परिवारों की माने तो ये हमारे कश्मीरी पण्डितों की निशानी है क्योंकि जब वो वापस लौटकर आयेंगे तो यहीं पर पूजा पाठ करेंगे। ऐसा विश्वास लेकर स्थानीय मुसलमान परिवार पूरी शिद्दत के साथ मन्दिर की साफ सफाई के अलावा मरम्मत का सारा खर्चा भी आपस में मिलाकर करते है। ऐसा धार्मिक उद्दाहरण विरला ही कहीं देखने को मिलेगा। सुम्बल के रहने वाले जमाल बताते है कि हमें याद पड़ता है कि जब हम बहुत छोटे थे तो तब कश्मीरी पण्डितों का पलायन शुरू हुआ उनसे हमारा घरेलु रिश्ता था वो हमारे अपने थे। तब से लेकर आज तक हम अपने कश्मीरी पण्डित भाईयों के आने का इंतजार कर रहे है। सरकार की मदद से मन्दिर में दुबारा से काम करवाने के लिए कई बार डीपीआर तैयार किया जा चुका है। जमाल का कहना है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हम सब एक है और सभी उस खुदा के बन्दे है। 

सुम्बल का नंद किशोर महादेव मन्दिर आज भी कश्मीरी पण्डितों का इंतजार कर रहा है, कि कब वो आयेंगे और फिर से महादेव की पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करेंगे। लेकिन सुम्बल के स्थानीय मुसलमान परिवार पूरी शिद्दत से मन्दिर की रखवाली में अपना सारा समय दे रहे है, और उनको भी पूरा विश्वास है कि एक दिन कश्मीरी पण्डित भाई जरूर आयेंगे और उसी दिन सही मायने में दिवाली और ईद सुम्बल में वो एक साथ मनायेंगे।  

 

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