भारत की स्पीति वैली में मौजूद है दुनिया का सबसे ऊंचा गाँव...

एक बहुत ही ज़्यादा ठंडी और बंजर घाटी, स्पीति वैली। जहां शायद ही आपको पेड़ देखने को मिलें। क्योंकि न तो यहां ज्यादा बारिश होती है और न यहां इतनी ज्यादा ऊंचाई पर ऐसा तापमान होता है, जिसमें आसानी से पेड़ उग सकें। और ऐसे में इस ठंडे और बंजर इलाके में लोग रहते हैं और खेती करते हैं। और इसी ठंडी घाटी में मौजूद है दुनिया का सबसे ऊंचा गांव... कोमेक!

भारत की स्पीति वैली में मौजूद है दुनिया का सबसे ऊंचा गाँव...
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लद्दाख: एक बहुत ही ज़्यादा ठंडी और बंजर घाटी, स्पीति वैली। जहां शायद ही आपको पेड़ देखने को मिलें। क्योंकि न तो यहां ज्यादा बारिश होती है और न यहां इतनी ज्यादा ऊंचाई पर ऐसा तापमान होता है, जिसमें आसानी से पेड़ उग सकें। और ऐसे में इस ठंडे और बंजर इलाके में लोग रहते हैं और खेती करते हैं। और इसी ठंडी घाटी में मौजूद है दुनिया का सबसे ऊंचा गांव... कोमेक!

कोमेक

15000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद कोमेक गांव, देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे ऊंचा गांव है। जो एक मोटरेबल रोड से जुड़ा हुआ है। इस गांव में बमुश्किल 60 लोग रहते है। और 60 लोगों की कुल आबादी वाले इस गांव में लोग जिंदा रहने के लिए उगाते हैं- जौ और मटर।

इन छोटे-छोटे और खू़बसुरत खेतों के अलावा यहां की जो दूसरी सबसे मज़ेदार चीज है, वो हैं यहा के मिट्टी से बने घर। जो स्पिति वैली की खू़न जमा देने वाली सर्दी में यानि -30 डिग्री के तापमान में भी इन लोगों को गर्म रखते हैं। अमूमन इन घरों को गर्म रखने के लिए एक तंदूर का इस्तेमाल किया जाता है। जो सर्दी के महीनों में यहां के लोगों की लाइफलाइन है।  
इसमें लकड़ियां या कोयले को जलाकर भर दिया जाता है, जिससे रूम गर्म रहता है। और यही तंदूर खाना बनाने के काम आता है। कम ऊंचाई वाले इन घरों की छत आमतौर पर लकड़ी की बनी होती है और दीवारे मिट्टी की। लकड़ी और मिट्टी के बने इन मकानों में गर्मी ज्यादा से ज्यादा वक़्त तक बनी रहती है। 

टॉयलेट का अलग है अंदाज

कुदरत के माहौल यानि वातावरण के हिसाब से ढल चुके यहां के लोग, एक सस्टेनएबल जिंदगी जीते हैं। उसका सबसे बड़ा एग्जाम्पल हैं यहां की टॉयलेट्स। इस गांव की लगभग सारी टॉयलेट ड्राई टॉयलेट्स हैं। यानि इनमें पानी का इस्तेमाल नहीं किया जाता। और यहां के लोग इस वेस्ट को अपने खेतों में खाद के तौर इस्तेमाल करते हैं।  

दिखता है स्नो लेपर्ड

लद्दाख में आने वाले बहुत से टूरिस्ट्स केवल स्नो लेपर्ड को देखने के मकसद से ही यहां आते हैं। और बहुत सी बार कोई भी स्नो लेपर्ड न दिखने पर निराश होकर वापस लौट जाते हैं। लेकिन शायद ही किसी टूरिस्ट को पता होगा कि दुनिया के इस सबसे ऊंचे गांव में न केवल सर्दियों में बल्कि गर्मियों में भी स्नो लेपर्ड देखने को मिल जाएंगे। 

खूबसूरत हैं कोमेक की सुबह और रातें...

स्पीति वैली के कोमेक गांव की सुबह और शाम बेहद शानदार होती हैं। इसका सुबूत देता हैं यहां मौजूद माउंट चाउ चाउ कांग निल्डा। 20679 फीट की ऊंचाई वाले इस बर्फीले पहाड़ पर गिरने वाली सुबह की सूरज की किरण से पूरा पहाड़ केसरिया रंग में रंग जाता है। जो लोगों की सुबह को और ज्यादा जानदार बना देता है। ठीक सुबह की तरह यहां शाम भी बड़ी शानदार होती है। आसमान में चमकते चांद की रौशनी जब इस पहाड़ की बर्फ पर पड़ती है तो पूरा का पूरा पहाड़ चांदी की तरह चमकने लगता है। 

जितना शानदार यहां का नज़ारे हैं, उतना ही संघर्षपूर्ण और चुनौतीपूर्ण यहां के लोगों जीवन है। यहां साल में केवल 7-8 महीनों के लिए फसलें उगती हैं, बाकि के महीनों में इन खेतों बर्फ जमी रहती है। फसल के नाम पर यहां जौ और मटर की फसल उगती है। 

अलग हैं यहां की रोटियां

ज़्यादा सर्दी की वजह से यहां के लोगों को खाना पकाने का ज़्यादा वक़्त नहीं मिलता। इस वजह से यहां की महिलाएं, रोटियों को अलग तरीके से पकाती हैं। उसके लिए रोटियों के लिए तैयार किए जाने वाले आटे में बेकिंग पाउडर मिलकर, उसे रात भर के लिए छोड़ दिया जाता है। और सुबह के वक़्त उससे कुछ रोटियां तैयार यानि बना ली जाती हैं। ये रोटियां आम रोटियों से अलग एक केक की तरह गद्देदार या फ्लफी होती हैं। सुबह सुबह लोगों का नाश्ता भी चाय रोटी ही होती है। जो उनके लिए ब्रेड का काम करती है।     

खू़बसूरत गांव और खूबसूरत लोग

दुनिया के ये सबसे ऊंचा गांव केवल ऊंचाई के मामले में ही ऊंचा नहीं है, बल्कि यहां के लोगों की मेहमान नवाज़ी, उनकी सादगी और उनका अपना-पन भी इसकी ऊंचाई को चार चांद लगाता है। इसी लिए सबसे ऊपर है भारत का कोमेक गांव...
 

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